दर्शन शास्त्र में शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध पांच स्कंध हैं, और जैन धर्म में पिंड को स्कंध कहा गया है ׀ बौद्ध धारणा अनुसार रुप, वेदना, विज्ञान, संज्ञा और संस्कार शारीर के पांच स्कंध हैं ׀ और इन स्कंधो के अतिरिक्त, स्कंध विहीन आत्मा अस्वीकार है ׀
अंगस्कंध इन दो शब्दों की संधि से बना है׀ इस पुस्तक के शीर्षक में अंग का तात्पर्य शारीर से है और स्कंध का दर्शन और बोद्ध पांच पांच स्कंधो से ׀ इसमें जहाँ सूत्रधार दार्शनिक स्कंध इस्तेमाल करके अपने शब्दों के माध्यम से रूप, रस और गंध का स्पर्श करवाता है वहीँ नायक विशेष अपने जीवन मैं अलग अलग कहानियों में रूप, वेदना, विज्ञानं, संज्ञा और संस्कार का अनुभव करता है ׀ इस उपन्यास में नायक के शरीर द्वारा भोगे गए यही स्कंध सूत्रधार द्वारा दार्शनिक तरीके से सूत्रों में पिरोये एवं परोसे गए हैं ׀
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