आज अचानक कुछ अनजाने पल,
तुम फिर पलकों में समां गयी,
आँखों में नमी दिल में उदासी,
उस याद की छा गयी
मनीषा श्रीवास्तव पेशे से डाक्टर हैं और मन से कवि हृदय। वे देश की प्रख्यात ट्रांसफ्यूज़न विशेषज्ञ जरूर हैं परंतु भावुकता के रेशों से बुना व्यक्तित्व है उनका। वे आधुनिक स्त्री हैं परंतु पारंपरिक माँ, बेटी और पत्नी होना उनका दूसरा पहलू है। साहित्य अनुरागी हैं वे। दुनिया को कवि की दृष्टि से देखती हैं। कविता हमारे आसपास ही होती है, बस, उसे पहचानने वाली निगाह चाहिये। कविता को संवेदनशील दिल से महसूस करना पड़ता है। जीवन तो काव्यरस से सिक्त है ही बस, कोई उसे महसूस कर सके और इस हद तक महसूस करे कि कविता रचे बिना फिर वह बेचैन ही रहे-तब वह कवि बन जाता है।
वे जीवन को व्यावहारिक, आध्यात्मिक, दर्शनशास्त्र (फिलोसफी) और भावुकता के मिले जुले भाव से परखती हैं। वे ‘याचना की वेदना’ को जानती हैं। वे मानती हैं कि प्यार रोजमर्रा के जीवन की भागदौड़ में खो सा गया लगता जरूर है पर पुरानी आत्मीय यादों का एक छींटा पड़ते ही सब कुछ हरा हो उठता है। वे ‘प्रतिबिम्ब’ को देखकर स्वयं की तलाश करने लगती हैं। वे ‘धुंध’ के भ्रम के बीच मिठास और सौंन्दर्य को देखने वाली दृष्टि रखती हैं (‘मैं वो धुंध हूँ, जो माँ के बुने गर्म स्वेटर के साथ स्कूल जाती थी...’)।
प्रत्येक कविता को काव्यशास्त्र की कसौटी पर तौलना कठिन है परन्तु यह एक सत्य है कि ये कवितायें मनीषा श्रीवास्तव में छुपे कविमन को समझने के लिये ‘शो केस विन्डो’ का काम करेंगी। मुझे विश्वास है कि वे यूँ ही स्वयं को परिमार्जित करने के जूनून में रहीं तो कविता में बहुत दूर तक जायेंगी। इन कविताओं को पढ़िये, आप मेरी राय से सहमत होंगे।
डॉ ज्ञान चतुर्वेदी
साहित्यकार
Manisha Shrivastava
Dr
Manisha Shrivastava was born in Jabalpur town in the state of Madhya Pradesh ,
India on 15th January, 1969. She was born in a family where her
father was into public administration and mother was a professor of chemistry
and she was gifted with an environment of literature, music and education since
childhood. Her father himself was
writing occasionally and he introduced her to the world of literature and English
and Hindi poetry. She became interested in writing and reading literature since
early school days. Her mother encouraged her to participate in poetry writing
and reciting competitions in school. Like her father she wanted to join the
Indian Administrative Services but her father inspired her to serve the society
by becoming a doctor instead and spending her life in the noble profession. Her
initial school days were spent in Gwalior and then in Jabalpur where she joined
MBBS in Government Medical college after completing school education from
Kendriya Vidyalaya, Jabalpur . She has postgraduate medical qualification (MD)
in Transfusion Medicine from reputed institute like SGPGIMS , Lucknow , UP and
is a well known Transfusion Medicine specialist of the country . She joined
Bhopal Memorial Hospital and Research Center , a hospital set up to serve the
victims of Bhopal Gas Tragedy , in the year 2000 at Bhopal and is currently the
Professor and head of the Department , Transfusion Medicine . She is the
founder member of Indian Society of Transfusion Medicine and has been rewarded
widely for her work in the specialty , the recent being the award of excellence
by the Ministry of Health and Family Welfare for the work on voluntary blood
donation and training of personnel in the field of blood transfusion. The Book “Disha
Ek nayee Rah ( Direction …towards a new way)” is a collection of 50 Hindi poetry
and depiction of the text through colored pictures, an expression of thoughts
and feelings through words bringing in experience through poetic creations
related to different spheres of life . Away from the monotony of professional
life, the author wants to generate the interest of readers into literature and
poetry especially in the National language Hindi. She feels poetry is an
effective and comprehensive way to touch hearts in short time and reading and writing
is the creativity which rejuvenates life.
This book of her Hindi poems consist of some humorous, some romantic
references and some bitter truths of life and is an effort to bring the reader
closer to the reality of life.
डॉ मनीषा श्रीवास्तव का जन्म मध्य प्रदेश
के जबलपुर जिले में १५ जनवरी ,१९६९ को हुआ। डॉ मनीषा बचपन से
ही हिंदी साहित्य और कविता में रुचि रखती थीं । पिता प्रशासनिक
अधिकारी थे और लेखन में उनकी विशेष रूचि थी अत:डॉ मनीषा को साहित्य , संगीत और अध्ययन से
विशेष लगाव था । पिता की तरह
प्रशासनिक अधिकारी बनने के उनकी इच्छा थी परन्तु उनके पिता ने उन्हें डॉक्टर बन कर
समाज से जुड़ने की प्रेरणा दी । माँ महाविद्यालय
में रसायन विज्ञानं की प्राध्यापिका थीं और हमेशा प्रतियोगिता और लेखन में
भाग लेने को प्रेरित करती थीं । ग्वालियर में
स्कूली शिक्षा के वर्ष बिताने के बाद केंद्रीय विद्यालय जबलपुर से बारवीं की
परीक्षा उत्तीर्ण कर एम् बी बी एस जबलपुर से पढ़ने के बाद विवाह उपरान्त रक्ताधान चिकित्साविषय
में स्नातकोत्तर डिग्री लखनऊ से प्राप्त कर वे वर्ष २००० में भोपाल मेमोरियल
अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र, गैस
पीडितों के लिए बनी संस्था में रक्तकोष प्रभारी के रूप नियुक्त हुईं और वर्तमान
में प्राध्यापक के रूप में कार्यरत र्हैं। विगत पंद्रह वर्षों
में उन्हें
अपने चिकित्सा क्षेत्र में कई पुरुस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिसमें हाल में
राष्ट्रीय सरहाना पुरुस्कार जो स्वैक्षिक रक्तदान और प्रक्षिक्षण के क्षेत्र में
किये गए उनके विभाग के कार्य को दिया गया है, शामिल है। वे भविष्य में समाज
में गरीब होनहार विद्यार्थियों को उनका मुकाम और जरूरतमंद मरीजों को समय पर इलाज़
उपलब्ध कराने के लिए समाज सेवा से जुड़ने की मंशा रखती हैं। यह पचास कविताओं का
संकलन “दिशा” कई
महत्वपूर्ण जीवन कारकों से जुड़ी उनकी विचारोक्ति , पुस्तक के रूप में
प्रथम अभिव्यक्ति
है। व्यवसायिक जीवन से
अलग अनुभूति को शब्दों में
प्रस्तुत कर और हिंदी साहित्य और कविता के प्रति पाठकों की अभिरुचि जगाकर
लेखिका उनसे इस दिशा में जुड़ना चाहती हैं। कुछ हास्य , कुछ प्रणय सन्दर्भ
और कुछ जीवन की कड़वी सच्चाईयों से भरा यह कविता संकलन पाठकों को यथार्थ के करीब
सरलता से ले जाने का एक प्रयास है।